गुलिया के दोहे | Gulia ke Dohe
गुलिया के दोहे ( Gulia ke Dohe ) ( 2 ) कभी-कभी ये सोचकर, आता है आवेश। मिला कहाँ बलिदान को, वो सपनों का देश।। लोकतंत्र को हो गया, जाने कैसा मर्ज़। बात करें अधिकार की, लोग भूलकर फर्ज़।। अब लोगों के बीच से, गायब हुआ यकीन। साँच – झूठ का फैसला, करने लगी मशीन।। … Continue reading गुलिया के दोहे | Gulia ke Dohe
Copy and paste this URL into your WordPress site to embed
Copy and paste this code into your site to embed