मेरा सुकुं ( Mera sukoon ) मेरा सुकुं ओ नींद भी मेरी उड़ाई है जबसे जवानी , टूट के जो तुझपे आई है शोला बदन को देख के , गुलशन हुआ हैरां बूटे भी खिले , आग ये कैसी लगाई है यूं ही नहीं , गुलाब हुआ सुर्ख रू जालिम आरिज … Continue reading मेरा सुकुं | Gustakh poetry
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