मेरा सुकुं | Gustakh poetry

मेरा सुकुं ( Mera sukoon )     मेरा  सुकुं  ओ  नींद  भी  मेरी उड़ाई है जबसे जवानी , टूट के जो तुझपे आई है   शोला बदन को देख के , गुलशन हुआ हैरां बूटे  भी  खिले  ,  आग ये कैसी लगाई है   यूं ही नहीं , गुलाब हुआ सुर्ख रू जालिम आरिज … Continue reading मेरा सुकुं | Gustakh poetry