लोकतंत्र | Kavita Loktantra

लोकतंत्र ( Loktantra )   हम घुट घुट कर जियें मरें, क्या यही हमारा लोकतंत्र है! बहती जहां सियासी गंगा, चेहरा जिसका राजतंत्र है!! जनसेवा का भाव लिये जो, चरते हैं मानवता को ! लगा मुखौटा राष्ट्रप्रेम का, दिखलाते दानवता को !! सुविधा शुल्क के चक्कर में, दिख रहा चतुर्दिक लूटतंत्र है! हम घुट घुट … Continue reading लोकतंत्र | Kavita Loktantra