लोकतंत्र | Kavita Loktantra
लोकतंत्र
( Loktantra )
हम घुट घुट कर जियें मरें,
क्या यही हमारा लोकतंत्र है!
बहती जहां सियासी गंगा,
चेहरा जिसका राजतंत्र है!!
जनसेवा का भाव लिये जो,
चरते हैं मानवता को !
लगा मुखौटा राष्ट्रप्रेम का,
दिखलाते दानवता को !!
सुविधा शुल्क के चक्कर में,
दिख रहा चतुर्दिक लूटतंत्र है!
हम घुट घुट कर जियें मरे,
क्या यही हमारा लोकतंत्र है!!
दीन दुखी असहाय जनों की,
पग पग पर लाचारी है!
नोच रहे रोटी बोटी जो,
उनकी ये खुद्दारी है!!
कानूनी सरताज वही है,
जिनके हाथों छूट तंत्र है!
हम घुट घुट कर जियें मरें,
क्या यही हमारा लोकतंत्र है!!
समय चक्र के चक्रव्यूह में,
अभिमन्यु मर जाते हैं!
उजड़ी कोख जुन्हाई फिर भी
अमर शहीद कहाते हैं!!
जिज्ञासु धनवान अमर है,
दौलत जिनका फूट तंत्र है!
हम घुट घुट कर जियें मरें,
क्या यही हमारा लोकतंत्र है!!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”
यह भी पढ़ें :-