हिज़्र भी वस्ल सा लगा है ये

हिज़्र भी वस्ल सा लगा है ये इक नया तजरिबा हुआ है येहिज़्र भी वस्ल सा लगा है ये अश्कों को भी समेट कर रखतालोग कहते हैं मसख़रा है ये वास्ते तेरे बस ग़ज़ल कहतेइस सुख़न -साजी ने किया है ये दाल रोटी के रोज़ चक्कर मेंइश्क़ तो अब हुआ हवा है ये गुम तो.होशो-ख़िरद … Continue reading हिज़्र भी वस्ल सा लगा है ये