इन्हीं दिनों | Inhi Dino

इन्हीं दिनों ( Inhi Dino ) अक्टूबर फिर गुज़रने को हैमेरे ज़ख़्म हरे करने को हैंपारिजात की बेलों परनीले फूल महक रहे थेउम्मीद की शाख़ों परआरज़ू के पंछी चहक रहे थे तुम ने इन्हीं दिनों दबे स्वर में कहाजा रहा हूँ सात समन्दर पारयदि हो सके तोतुम करना इन्तज़ारतुम्हें कैसे बताऊँउस लम्हे की कसकज़मीं पे … Continue reading इन्हीं दिनों | Inhi Dino