इंसानियत का रथ | Insaniyat ka Rath

इंसानियत का रथ ( Insaniyat ka rath )   शर्मिंदा किस कदर है इंसानियत का रथ बढ़ता ही जा रहा है हैवानियत का रथ वाइज़ बिछा रहे हैं बस अपनी गोटियाँ रोकेगा कौन देखो शैतानियत का रथ हो जायें बंद अब यह फिरक़ापरस्तियां आयेगा शहर में कब इंसानियत का रथ निकला हूँ फूल लेके उस … Continue reading इंसानियत का रथ | Insaniyat ka Rath