इश्क़ का कर्जा | Ishq ka Karz

इश्क़ का कर्जा ! ( Ishq ka karz )    अपनी लौ से तपाए ये कम तो नहीं, आए गाहे – बगाहे ये कम तो नहीं। सुर्ख होंठों से मिलता रहे वो सुकूँ, दूर से ही पिलाए ये कम तो नहीं। मेरे तलवों से कितने बहे हैं लहू, आ के मरहम लगाए ये कम तो … Continue reading इश्क़ का कर्जा | Ishq ka Karz