जब भी कोई कहीं बिखरता है

जब भी कोई कहीं बिखरता है जब भी कोई कहीं बिखरता हैअक़्स माज़ी का खुद उभरता है क्यूँ रखूँ ठीक हूलिया अपनाकौन मेरे लिए संवरता है चाहतें कब छिपी ज़माने मेंक़ल्ब आँखों में आ उतरता है वस्ल में हाले-दिल हुआ ऐसापेड़ झर झर के जब लहरता है बात कर लेना हल नहीं लेकिनजी में कुछ … Continue reading जब भी कोई कहीं बिखरता है