झूठ की दौड़ | Jhoot ki Daud

झूठ की दौड़ ( Jhoot ki daud )    झूठ के मुरब्बों में मिठास तो बहुत होती है किंतु,देर सबेर हाजमा बिगड़ ही जाता है झालर मे रोशनी,और कागजी फूलों की महक जैसे…. हमाम मे तो नंगे होते हैं सभी बाहर मगर निकलते कहां हैं दाल मे नमक बराबर ही हो तो अच्छा शक्कर बराबर … Continue reading झूठ की दौड़ | Jhoot ki Daud