जुमेरात को | Jumerat ko

जुमेरात को ( Jumerat ko )    आज धरा ,यह ज़मीं कुछ नाराज सी लगी आसमां से आफाक में न कभी मिले हो ना कभी ढंग से मुझे ढके हो उल्टा पनाह दिए हो आफताब को जो खुद भी आग है ,शोला है और मुझे भी जलाता है झुलसाता है ,नाजुक सी मेरी जान को … Continue reading जुमेरात को | Jumerat ko