कभी तो कोई बात होना चाहिये | Ghazal Kabhi to

 कभी तो कोई बात होना चाहिये ( Kabhi to koi baat hona chahiye )     बाद मसरूफ ही सही , कभी तो कोई बात होना चाहिये लाख फासले हो, फिर भी ‘होने’ का एहसास होना चाहिये   समझ  लो  हमारी  ज़िद या तकाज़ा-ए-वक्त इसको मगर न कहना, मौजू-ए-गुफ्तगू भी कुछ होना चाहिये   खामोश … Continue reading कभी तो कोई बात होना चाहिये | Ghazal Kabhi to