अंतर लहरें उठ रही हैं, नेह के स्पंदन में

अंतर लहरें उठ रही हैं, नेह के स्पंदन में   मन गंगा सा निर्मल पावन, निहार रहा धरा गगन । देख सौम्य काल धारा, निज ही निज मलंग मगन । कर सोलह श्रृंगार कामनाएं, दृढ़ संकल्पित लक्ष्य वंदन में । अंतर लहरें उठ रही हैं, नेह के स्पंदन में ।। नवल धवल कायिक आभा, स्नेहिल … Continue reading अंतर लहरें उठ रही हैं, नेह के स्पंदन में