अपनों से जंग | Kavita apno se jung

अपनों से जंग ( Apno se jung )   भले बैर भाव पल रहे जंग नहीं लड़ सकते हैं चंद चांदी के सिक्कों पे हम नहीं अड़ सकते हैं   अपनापन अनमोल गायब सदाचार मिलता कहां रिश्तो में कड़वाहट घुली वह प्रेम प्यार रहा कहां   एक दूजे को नैन दिखाए भाई से भाई टकराए … Continue reading अपनों से जंग | Kavita apno se jung