गुणगान | Kavita Gungaan

गुणगान ( Gungaan )   मिलते रहो मिलाते रहो सभी से जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये फुरसत हि मिली नहीं काम से कभी जाने कब आराम हि आराम हो जाए लोभ, लाभ, धन, बैर रह जायेंगे यहीं भूल जायेंगे अपने भी चार दिन के बाद ही बनती हि चली आई है गृहस्थी आज … Continue reading गुणगान | Kavita Gungaan