Kavita Gungaan
Kavita Gungaan

गुणगान

( Gungaan )

 

मिलते रहो मिलाते रहो सभी से
जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये
फुरसत हि मिली नहीं काम से कभी
जाने कब आराम हि आराम हो जाए

लोभ, लाभ, धन, बैर रह जायेंगे यहीं
भूल जायेंगे अपने भी चार दिन के बाद ही
बनती हि चली आई है गृहस्थी आज तक
बनती हि रहेगी आपके चले जाने के बाद भी

न रहा कोई, न रही हि किसी की कभी
रजवाड़े महल सभी बदल गये खंडहर मे
औकात तो आखिर आपकी भी क्या है
उड़ जाता है सबकुछ, वक्त के बवंडर मे

कल और आज के बीच हुआ पार दरिया है
आगंतुक वक्त का सागर बहुत हि गहरा है
आयेंगे नही काम आपके बने वैभव सारे
आपके हि कर्म पर भविष्य भी ठहरा है

दरख़्त का नहीं, महत्व तो उसके फल का है
कीमत आपके आज का नही, कल का है
रह जाता है नाम और व्यवहार हि हरदम
रह जाता है दिलों मे आपका गुणगान हरदम

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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