इतिहास ( Itihas ) उड़ती हैं नोट की गड्डियाँ भी दरख़्त के सूखे पत्तियों की तरह होती है नुमाइश दौलत की फ़लक पे चमकते सितारों की तरह बेचकर इमां धरम अपना बन गई है सिर्फ खेल यह जिन्दगी अय्याश का भोग हि जीवन बना धरी की धरी रह गई है बंदगी शिक्षा जरिया बनी … Continue reading इतिहास | Kavita Itihas
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