जनता जनार्दन | Kavita Janta Janardan

जनता जनार्दन ( Janta Janardan ) भोली भाली जनता भटक रही इधर उधर सीधी सादी जनता अटक रही इधर उधर बहुरुपिए बहका रहे बार-बार भेष बदल जाति जाल मे खटक रही इधर उधर नये इरादे नये वादे झूठे झांसों में झमूरे मदारी में मटक रही इधर उधर नोटंकी होती ग़रीबी हटाने की हर बार पांच … Continue reading जनता जनार्दन | Kavita Janta Janardan