कलम | Kalam

कलम ( Kalam ) हाँ, मैं कलम हूँ रहती हूँ मैं उंगलियों के मध्य लिख देती हूं कोरे कागज पर जो है मेरी मंजिल पर खींच देती हूँ मैं टेढ़ी-मेढ़ी लाइनों से मानव का मुकद्दर छू लेता है आसमां कोई या फिर जमीं पर रह जाता है या किसी की कहानी या इबारत लिख देती … Continue reading कलम | Kalam