खाली ( Khali ) गगन को छु रही आज की इमारतें, मगर…इंसान हुआ ज़मीन-बोश है, इन इमारतों में ढूंढता वजूद अपना, वो क्या जाने सब कर्मों का दोष है, ईंट पत्थरों पर इतराता यह इंसान, है कुदरत के इंसाफ से ये अनजान, जब पड़ती उसकी बे-आवाज़ मार, पछताता रह जाता फिर ये नादान, जब … Continue reading खाली | Kavita Khali
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