Kavita Khali
Kavita Khali

खाली

( Khali )

 

गगन को छु रही आज की इमारतें,
मगर…इंसान हुआ ज़मीन-बोश है,
इन इमारतों में ढूंढता वजूद अपना,
वो क्या जाने सब कर्मों का दोष है,

ईंट पत्थरों पर इतराता यह इंसान,
है कुदरत के इंसाफ से ये अनजान,
जब पड़ती उसकी बे-आवाज़ मार,
पछताता रह जाता फिर ये नादान,

जब तक साँसें चले बहुत इतराता,
घर,गाड़ी, का रौब सब पर जमाता,
चंद लम्हे में ही रूह कब्ज हो जाती,
फिर खाली हाथ ही लौट वो जाता,

चमकती गाड़ी इमारतें खड़ी रहती,
उसके नाम की झूठी माला जपती,
सारी आसाईशें यहीं धरी रह जाती,
फिर किस बात पे दुनिया गुमां करती!

Aash Hamd

आश हम्द

( पटना )

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