क्या खोया क्या पाया | Kya Khoya Kya Paya
क्या खोया क्या पाया ( Kya Khoya Kya Paya ) उन गलियों से जब भी गुजरी आँखों मे अश्रुधार लिये सोच रही थी चलते-चलते कि—- यहाँ मैंने क्या खोया, क्या पाया है। पाकर सब कुछ फिर सब कुछ खोना क्या यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है जब है फिर ये खोना या फिर पाना तो … Continue reading क्या खोया क्या पाया | Kya Khoya Kya Paya
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