नया दौर | Kavita Naya Daur

नया दौर ( Naya Daur )   इतना बेरुख जमाना हो गया मुसकुराना तक गुनाह हो गया जजबातों का जमाना अब कहां हर इक शय अंजाना हो गया खून की नदियां कहा करती है दुश्मन अपना जमाना हो गया आखों में किसी के खुशियां कहा दर्द का ये पैमाना फसाना हो गया मिटा मजहब की … Continue reading नया दौर | Kavita Naya Daur