Kavita Naya Daur

नया दौर

( Naya Daur )

 

इतना बेरुख जमाना हो गया
मुसकुराना तक गुनाह हो गया

जजबातों का जमाना अब कहां
हर इक शय अंजाना हो गया

खून की नदियां कहा करती है
दुश्मन अपना जमाना हो गया

आखों में किसी के खुशियां कहा
दर्द का ये पैमाना फसाना हो गया

मिटा मजहब की तहरीरों को
काम इनका लड़ाना हो गया

अब हँसने-हँसाने की बातें करें
बहुत शोक तो मनाना हो गया

Shekhar Kumar Srivastava

शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)

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