पथिक प्रेमी ( Pathik Premi ) हे पथिक मंजिल से भटके, ढूंढता है क्या बता। क्यों दिखे व्याकुलता तुझमें, पूछ मंजिल का पता। यू ही भटकेगा तो फिर सें, रस्ता ना मिल पाएगा, त्याग संसय की घटा अरू, पूछ मंजिल का पता। जितना ही घबराएगा तू, उतना ही पछताएगा। वक्त पे ना पहुचा … Continue reading पथिक प्रेमी | Kavita
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