रात्रिकाल ( Raatrikaal ) दिन भर करते काम जो,अब हो आई शाम। थके थके से चल रहे, छोड़के सारा काम।। सूरज ढलने से हुई, ठंडी तपती धूप। रात सुहानी आ गई ,बिखरी छटा अनूप।। चूल्हा घर-घर जल रहा,रोशन घर परिवार। कोई पशु को नीरता, कर रहा सार संभार।। टिमटिम तारे कर … Continue reading रात्रिकाल | Kavita
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