रात्रिकाल | Kavita

रात्रिकाल ( Raatrikaal )   दिन भर करते काम जो,अब हो आई शाम। थके थके से चल रहे, छोड़के सारा काम।।   सूरज  ढलने  से  हुई, ठंडी  तपती  धूप। रात सुहानी आ गई ,बिखरी छटा अनूप।।   चूल्हा घर-घर जल रहा,रोशन घर परिवार। कोई पशु को नीरता, कर रहा सार संभार।।   टिमटिम तारे कर … Continue reading रात्रिकाल | Kavita