साहब | Sahab par Kavita

साहब ( Sahab )   जब भी मुॅंह को खोले साहब। कड़वी बोली बोले साहब।   नफरत दिल में यूॅं पाले हैं, जैसे साॅंप, सॅंपोले साहब।   राजा के संग रंक को क्यों, एक तराजू तोले साहब।   भीतर कलिया नाग बसा है, बाहर से बम भोले साहब।   वोट के लिए दर-दर घूमे, बदल-बदल … Continue reading साहब | Sahab par Kavita