
साहब
( Sahab )
जब भी मुॅंह को खोले साहब।
कड़वी बोली बोले साहब।
नफरत दिल में यूॅं पाले हैं,
जैसे साॅंप, सॅंपोले साहब।
राजा के संग रंक को क्यों,
एक तराजू तोले साहब।
भीतर कलिया नाग बसा है,
बाहर से बम भोले साहब।
वोट के लिए दर-दर घूमे,
बदल-बदल के चोले साहब।
रोते सब घड़ियाली आंसू,
छोटे बड़े मंझोले साहब।
जनता कीचड़ में लथपथ है,
आपको उड़न खटोले साहब।
खाते जिनकी आप कमाई,
उनके जिगर फफोले साहब।
आपकी भरी तिजोरी है,
खाली सबके झोले साहब।
कवि : बिनोद बेगाना
जमशेदपुर, झारखंड