सावन फुहार | Kavita Sawan Fuhaar

सावन फुहार ( Sawan Fuhaar ) रिमझिम जो सावन फुहार बरसी, जमीं को बुझना था फिर भी तरसी, जो बिखरीं जुल्फों मे फूटकर के, वो बूंद जैसे जमीं को तरसी, रिमझिम जो…………. हमारे हाॅथों मे हाॅथ होता, पुकार सुनकर ठहर जो जाते, बहार ऐसे न रूठ जाती, बरसते सावन का साथ पाते, अजी चमन मे … Continue reading सावन फुहार | Kavita Sawan Fuhaar