त्राहिमाम ( Trahimam ) प्रकृति विकृति समाया चलो इसे उबारें उमस गहन छाया चलो आंधियां लाएं सन्नाटा सघन पसरा चलो चुप्पिया॔ तोड़ें चित्कारें चरम छूती चलो चैतन्य पुकारें प्रचंड प्रलय आया चलो गीत-मीत गाएं बेसुध कराहे बसुधा चले पीयूष पिलायें मानव बना दुर्वासा चलो मनुज बनाएं स्याह सबेरा दिखता चलो सोनल चमकायें मन असुरी … Continue reading त्राहिमाम | Kavita Trahimam
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