तृष्णा | Kavita Trishna

तृष्णा (Trishna ) तृष्णाएं सदा संतृप्त, नेह से संसर्ग कर पगडंडियां व्याकुल दिग्भ्रमित, उच्चवाचन मरीचि प्रभाव । सुख समृद्धि मंगलता दूर, निर्णयन क्षमता अभाव । अथक श्रम सफलता चाहना, विराम पल उत्सर्ग कर । तृष्णाएं सदा संतृप्त ,नेह से संसर्ग कर ।। नैतिक आचार विचार, नित विमल कामना स्पंदन । कपट रहित धवल छवि, हृदय … Continue reading तृष्णा | Kavita Trishna