वर्जिन सुहागन | Kavita Virgin Suhagan

वर्जिन सुहागन ( Virgin Suhagan ) कब मेरा अस्तित्व, वेदनाओं, संवेदनाओं,दर्दो ओ ग़म का अस्तित्व बना पता ही न चला। एहसासों के दामन तले जीते गए भीतर और भीतर मेरे समूचे तन ,मन प्राण में, उपजे मासूम गुलाबों को, कब हां कब तुमने कैक्टस में बदलना शुरू किया, हमें पता ही न चल पाया। अहसास … Continue reading वर्जिन सुहागन | Kavita Virgin Suhagan