कुछ खतायें है अक्स-ए-रुखसार में | Ghazal kuch khataayen
कुछ खतायें है अक्स-ए-रुखसार में ( Kuch khataayen hai aks e rukhsaar mein ) कुछ खतायें है अक्स-ए-रुखसार में हम बिगड़ चुके है निगाह-ए-यार में चस्म-ए-क़ातिल से हमे भला कौन बचाये अब इस पयाम के मलाल-ए-यार में खूब हो तुम भी के नाराज़ हो हमसे और हम पे ही ऐब है ऐतवार … Continue reading कुछ खतायें है अक्स-ए-रुखसार में | Ghazal kuch khataayen
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