क्या कहना सरस सरगम सुधा सी सुंगधित बयार क्या कहना। चलन चपला सी चंचल छन छनन झंकार क्या कहना।। विकट लट की घटा की छटा न्यारी, कशिश ऐसी अनुचरी प्रकृति है सारी, घूंघट पट अपट अनुपम निष्कपट श्रृंगार क्या कहना।। कमल दल विकल लखि अधरन की आभा, रंक जग है तुम्हारा … Continue reading क्या कहना
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