लफ़्ज़ों की हकीकत | Lafzon ki Haqeeqat

लफ़्ज़ों की हकीकत ( Lafzon ki Haqeeqat )    मैं तुम्हें लफ़्ज़ों में समेट नही सकती क्योंकि— तुम एक स्वरूप ले चुके हो उस कर्तार का– जिसे मैं हमेशा से गृहण करना चाहती हूँ किन्तु– समझा नही पाती तुम्हें कि– अपने विजन को छोड़कर यथार्थ जीने का द्वंद्व वाकई में कितना भयप्रद है। नकार देती … Continue reading लफ़्ज़ों की हकीकत | Lafzon ki Haqeeqat