मरासिम अब हाँ! कुछ भी नहीं ( Maraasim ab haan! kuchh bhi nahin ) मरासिम अब हाँ! कुछ भी नहीं पर कहने से होता कुछ भी नहीं ज़ेहन और दिलका आबाई जंग है इस के बरख्श तेरा कुछ भी नहीं ज़िन्दगी है सोज़-ए-शाम-ओ-सेहर और इस के सिवा कुछ भी नहीं … Continue reading Nice Ghazal | कुछ भी नहीं
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