मुसाफिर हैं आदमी: अहं किस बात की ?

मुसाफिर हैं आदमी: अहं किस बात की ? ************ न कोई हैसियत अपनी,न स्थायी मकान, जिंदा हैं जब तलक,तभी तक है पहचान। ढ़ाई किलो का था,जब तू आया था यहां, बस उतना ही रह जाओगे,जब जाओगे वहां। विश्वास न हो तो उठा लाना! राख के उस ढ़ेर को- जो चिता की अग्नि में जल कर … Continue reading मुसाफिर हैं आदमी: अहं किस बात की ?