मुस्तकिल अंधेरा | Mustaqil Andhera

मुस्तकिल अंधेरा ( Mustaqil Andhera ) धीरे-धीरे अंधेरा गहराता जा रहा है, हर शय को यह धुंधलाता जा रहा है, दुनिया की हर रंगत स्याह हो रही है, ये काजल आँखों में समाता जा रहा है, बाहर का अंधेरा अंतर्मन पे भी छा रहा है, जीने की हरआरज़ू को यह अब खा रहा है, सोचता … Continue reading मुस्तकिल अंधेरा | Mustaqil Andhera