नदी का किनारा बहती नदी संग मैं ठहरा सा बैठा,तेरी राहों में उम्मीदों को समेटा।लहरें भी अब तो कहने लगीं,दिकु, लौट आओ,इन्हीं दुआओं के धागों से हूँ मैं लिपटा। धूप-छाँव का ये खेल भी सुना सा है,तेरी हँसी के बिना हर रंग धुंधला सा है।पानी में देखूँ तो चेहरा तेरा उभरे,तेरी आहटों का हर साया … Continue reading नदी का किनारा
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