नज़रों का सच | Kavita

नज़रों का सच ( Nazron Ka Sach )   देखती  है  जो  नज़रे वो होता नहीं, चाहती है जो नज़रे वो दिखता नहीं। मन को छू जाए जज़्बात होंठो पे हो, आसूं बनके बहे मानता मन नहीं ।।   भीड़  को  देखा  राहों  पे बढ़ते हुए, दे  के  धक्का  बगल  में संभलते हुए। आंख  में  … Continue reading नज़रों का सच | Kavita