सोच कर देखो | Pakshi par Kavita
सोच कर देखो ( Soch kar dekho ) पक्षी पर कविता किसी आशियाना को कोई कब तक बनाएगा, जब उखाड़ फेंकने पर कोई तुला हो, बाग बगीचा वन उपवन को छिन्न-भिन्न कर हमें बसाना कौन चाहता है? आज कल वह कौन है जो पेड़ लगाने वाला कोई मिला हो, सुबह होते ही हम कलरव … Continue reading सोच कर देखो | Pakshi par Kavita
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