Pakshi par Kavita
Pakshi par Kavita

सोच कर देखो

( Soch kar dekho )

पक्षी पर कविता

 

किसी आशियाना को
कोई कब तक बनाएगा,
जब उखाड़ फेंकने पर
कोई तुला हो,
बाग बगीचा वन उपवन
को छिन्न-भिन्न कर
हमें बसाना कौन चाहता है?
आज कल
वह कौन है
जो पेड़ लगाने वाला
कोई मिला हो,
सुबह होते ही हम
कलरव ध्वनि से
आंगन में प्रसन्नता
खुशियां लाते
मन बहलाते
दाना चुगते
पर सोंच कर देखो
आज
दाना खिलाने वाला
कोई मिला हो।
हम बेघर,भूखे
भटकते राह में चलते
भूख मिटाते हैं
हम अपना जीवन
मर मर कर
कैसे बिताते ,
वह कौन है?जो
बस अपने
स्वार्थ के सिवा
हमें बचाने वाला
कोई मिला हो।
हमें याद है
लोग हमें पालते थें
स्नेह बस ,
साथ घुमाते दें,
पढ़ाते थे
प्रेम बस
परिवार के अंग
समझते थें
पर आज
वह कौन है?
जो पानी पिलाने वाला
कोई मिला हो।
हमें क्यों मजबूर
कर रहे हो?
मरने के लिए
उजाड़ते आशियाना
दूर जाने के लिए
हमने क्या बिगाड़ा है?
आपका
हमारा भी अधिकार है
जीने के लिए
हमें डर लगने लगा
है आप से
दिखता ही नहीं है
हमें बचाने वाला
कोई मिला हो।
तुम्हीं ने तो हमें
भगवान के पास बिठाया
कभी चित्रों में दर्शाया
तों कभी
दूत बनाया
आज वह कहां
जो किस्सों में
सुनानें वाला
कोई मिला हो।
सृष्टि के
बुद्धिमान मनुष्य
अपने स्वार्थ में
परहित धर्म-कर्म
भूल रहे हो
हमें अपनों से
दूर क्यों?
कर रहे हो
सोंच कर देखो
सुबह सुबह
तुम्हें
राग सुनाने
वाला कोई मिला हो।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here