परिमार्जक प्रकृति | Kavita Parimarjak Prakriti
परिमार्जक प्रकृति चलायमान सृष्टि को गौर से देखो कभी मंद -मंद सुरभित बयार, सभी को प्राण वायु से भरती दिनकर की प्रखर रश्मियांँ सृष्टि को जीवंतता प्रदान करती । चढ़ते, उतरते चांँद से शीतलता, मृदुलता की शुभ वृष्टि, हरी – भरी वसुंधरा जो सभी का पोषण है करती रंग-बिरंगे पांँखी, मधुर तान सी छेड़ … Continue reading परिमार्जक प्रकृति | Kavita Parimarjak Prakriti
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