पसीना ( Paseena ) चाहे हो ऋतुराज अथवा सरस सावन का महीना। रक्त जलता है तब बनता है पसीना ।। स्वेद रस में सनके ही रोटी बनी है। ये भवन अट्टालिका चोटी बनी है। वो कुटज में रहता है थक-हार कर। खाली पेट सो गया मन मार कर। रिक्शे की पहिये से पूछो कितना … Continue reading पसीना | Paseena par kavita
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