आदमी बढ़ने लगा | Poem aadmi badhne laga

आदमी बढ़ने लगा ( Aadmi badhne laga )   आदमी से आदमी ही, आजकल डरने लगा । रौंदकर रिश्तों को जब, आदमी बढ़ने लगा ।।   नीम, इमली और बरगद पूछते, कब आओगे.? छोड़कर वो गांव जब, परदेश को चलने लगा ॥   दूरियाँ उसने बना ली, जो कभी परछाई था मुफलिसी का जब अंधेरा, … Continue reading आदमी बढ़ने लगा | Poem aadmi badhne laga