घंटाघर की चार घड़ी | Poem ghanta ghar ki char ghadi
घंटाघर की चार घड़ी ( Ghanta ghar ki char ghadi ) घंटाघर की चार घड़ी, चारो में जंजीर पड़ी। जब वो घंटा बजता था, रेल का बाबू हंसता था।। हंसता था वो बेधड़क, आगे देखो नई सड़क। नई सड़क मे बोया बाजरा, आगे देखो दिल्ली शाहदरा।। दिल्ली शाहदरा में लग गई आग, … Continue reading घंटाघर की चार घड़ी | Poem ghanta ghar ki char ghadi
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