
घंटाघर की चार घड़ी
( Ghanta ghar ki char ghadi )
घंटाघर की चार घड़ी,
चारो में जंजीर पड़ी।
जब वो घंटा बजता था,
रेल का बाबू हंसता था।।
हंसता था वो बेधड़क,
आगे देखो नई सड़क।
नई सड़क मे बोया बाजरा,
आगे देखो दिल्ली शाहदरा।।
दिल्ली शाहदरा में लग गई आग,
आगे देखो गाजियाबाद।
गाज़ियाबाद में ब्याही सूरी,
आगे देखो डासना मसूरी।।
डासना मसूरी में बहती नहर,
आगे देखो पिलखुवा शहर।
पिलखुवा शहर में पड़े थे झापड़,
आगे खाओ हापुड़ के पापड़।।
हापुड़ में हो गया था दंगा,
आगे देखो गढ़ की गंगा।
गढ़ की गंगा में पड़ गया रोला,
आगे देखो शहर गजरौला।।
शहर गजरौला मे गधा खड़ा,
आगे देखो गाव पाक बडा।
पाक बड़े मे मिली न खाद
आगे देखो जिला मुरादाबाद।।
रचनाकार : आर के रस्तोगी
गुरुग्राम ( हरियाणा )
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