हरि की माया | Poem hari ki maya
हरि की माया ( Hari ki maya ) धुंध रहा ना बचा कोहरा,पर शक का साया गहरा है। अपनों पर विश्वास बचा ना,मन पे किसका पहरा हैं। बार बार उलझा रहता हैं, मन उसका हर आहट पे, जाने कब विश्वास को छल दे,संसय का पल गहरा है। मन स्थिर कैसे होगा जब, … Continue reading हरि की माया | Poem hari ki maya
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